Boy in a strange city

Things that are, things that were and things that will be


कच्चे बगीचे

शहर शहर अब ढूंढ रही है 

एक कच्चा बगीचा 

कच्चे बगीचों का किन्तु 

कोई शहर  न होगा

 

मधुबन मधुबन फिरती है 

एक मासूम तितली 

लथपथ खुद को करती 

अब हर मधुबन रूठा 

 

चलते चलते आ गयी 

इस लोहे के जंगल 

नन्ही सी तितली का 

अब मेला छूटा 

 

डगर डगर बस दर्द मिला है 

ठोकरें खायी हज़ार 

ठोकरों से ही तोह है 

उसने उड़ना सीखा 

 

खोती जाती है दिन प्रतिदिन

अपने रंग वो 

बस लाल रंग लहू का 

और गाढ़ा होता 

 

कच्चे बगीचे तो है

रेगिस्तान में पानी 

कच्चे बगीचों  का होना

है बस आँखों का धोका 

 

शहर गांव के बीच

तितली का बसेरा 

रात मगर काली है

न होता उजला सबेरा 

 

बाज़ार के फूलों को 

क्यों तितली की परवाह 

बाज़ार के फूलों का 

कोई अपना न होता 

 

दिखने में जीवंत 

पर है अंदर से मुर्दा 

जो तितलियाँ न होती 

तोह इनका रंग न होता 

 

तितली की लाश पे 

कहां कोई बवाल है 

मुर्दा तितली का शायद 

कोई धर्म न होगा 

 

तितलियाँ जो हज़ार हो 

तोह उन्हें भूलना आसान है 

भूलना आसान है 

के उनमे भी जान है 

 

तितली का भी हक़ है 

अपना जीवन जीना 

जागीर नहीं फूलों की 

उसे मजबूर न कहना

 

एक दिन ये तितली ही 

शोला बन जाएगी 

जलायेगी  हर मधुबन 

जला देगी हर कच्चा बगीचा 



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About Me

I’m a guy in a strange place writing an infrequent blog. I speak with little to no expertise on everything. What I write comes from my lived experience and that’s all there is to it. This is a blog maintained with v low effort and purely for my joy

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